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ग़ुस्ताख़ाना और नापाक वीडियो शेयर न करें!

  ग़ुस्ताख़ाना और नापाक वीडियो शेयर न करें!


*एक मरतबा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह से सवाल हुआ कि* मुशरेक़ीन (गैर मुस्लिम) अपने अख़बारों और पर्चों में ऐसे मज़मून छापते हैं जिन में *इस्लाम और क़ुरआने करीम पर झूठे एतेराज़ व इल्ज़ाम होते हैं* और रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नऊज़ुबिल्लाह गालियाँ दी जाती हैं। *अब जो मुसलमान उनके यहाँ नौकर हैं और ऐसे मज़मून की कॉपी नवेसी यानी टाइपिंग वग़ैरा का काम करते हैं* या उन अख़बारों और पर्चों को तक़सीम करते हैं, *उन पर भी हुक्म लगे गा या सिर्फ़ मज़मून लिखने वाले लेखक पर?* (मफहूमन)


इस का जवाब लिखते हुए सय्यदना आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया कि:

*"अल्हम्दुलिल्लाह! फ़क़ीर ने वो नापाक मलऊन जुमले (अल्फाज़) न देखे*, जब सवाल की उस सतर (लाइन) पर आया जिस से मालूम हुआ कि आगे वो गुस्ताखियाँ लिखी होंगी, *उन पर नज़र न की बलके नीचे लिखे सवाल को एहतियात के साथ देखा* और उपर गुस्ताखी वाला सिर्फ एक लफ़्ज़ जिस पर इत्तेफाक से नज़र पड़ी, *वही मुसलमान के दिल को ज़ख़्मी करने के लिए काफ़ी है,* अब ये कि जवाब लिख रहा हूँ, काग़ज़ मोड़ लिया है *ताकि वो नापाक अल्फाज़ और जुमले देखने और पढने की नौबत न आए.

 जो नाम के मुसलमान इन जुमलों को नक़ल करते हैं और अल्लाह तआला व क़ुरआने अज़ीम व नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में ऐसे लानती जुमले, ऐसी गालियाँ अपने क़लम से लिखते छापते हैं, या किसी तरह इस में मदद करते हैं, उन सब पर अल्लाह तआला की लानत उतरती है, वो अल्लाह व रसूल के मुख़ालिफ़ और अपने ईमान के दुश्मन हैं।"


(नोट: लोगों की आसानी के लिए हम ने इस सवाल को मुख्तसर कर दिया है और मुश्किल जुमलों को आसान लफ्जों में बदल दिया है.)


जब आप फ़तावा ए रज़विया में इस सवाल को देखेंगे तो इस में ग़ुस्ताख़ी का कोई जुमला या लफ़्ज़ नज़र नहीं आएगा, फिर आला हज़रत ने कैसे फ़रमाया कि मैंने उन नापाक अल्फाज़ पर नज़र न की..?

तो बात दर असल ये है कि सवाल में ग़ुस्ताख़ियों के चंद नमूने मौजूद थे मगर सय्यदना आला हज़रत ने उन्हें अपने मज़मूआ में नकल नहीं करवाया और फ़रमाया कि: "फ़क़ीर के यहाँ फ़तावा मज़मूआ पर नकल होते हैं। मैंने नकल करने वाले साहब से कह दिया है कि इन मलऊन अल्फ़ाज़ को नकल न करें, सुना गया है कि साइल का इरादा इस फ़तवे को छापने का है। (यानि ये फतवा छपवा कर आम किया जाए गा) इस लिए मैं गुज़ारिश करता हूँ कि इन गुस्ताखियों को निकाल डालें। इन की जगह एक-दो सतरें (लाइन) ख़ाली सिर्फ़ नुक्ते लगा कर छोड़ दें ताकि मुसलमानों की आँखें इन लानती नापाक अल्फाज़ के देखने से महफ़ूज़ रहें।"

(मफ्हुमन, फतावा ए रज़विया, 21)


 सुबहानल्लाह! कैसा इश्क़े रसूल..

कैसी ईमानी ग़ैरत...


और किस क़दर एहतियात है...

कि आला हज़रत ने उन ग़ुस्ताख़ाना अल्फ़ाज़ को सवाल में नकल करने से मना फ़रमा दिया...

 और एक हम हैं..!

कि जहाँ कहीं कोई ग़ुस्ताख़ी भरी वीडियो या पोस्ट देखी, सब से पहले उसे शेयर करना अपने ऊपर लाज़िम समझते हैं और कुछ तो वो हैं जो शेयर न करने वाले को बुरा कहते हैं। इस तरह ग़ुस्ताख़ाना वीडियो देखने वालों की तादाद लाखों तक पहुंच जाती है।


इस लिए ऐ नादान मुसलमानो !

ख़ुदारा अक़्ल से काम लो!


 जब कभी ऐसी कोई पोस्ट या वीडियो देखो* तो बिला ज़रूरते शरईया उस को शेयर न करो *और लाखों करोड़ों मुसलमानों को उन ग़ुस्ताख़ियों और नापाक अल्फ़ाज़ के देखने, सुनने और पढ़ने से बचाओ।



अब इस मेसेज को शेयर करोगे या ये भी हमें समझाना पड़ेगा !



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